गरीबों से पांच हजार की मांग, हितग्राहियों की शिकायत पर जिला कार्यालय में अटैच
गजानंद कश्यप छत्तीसगढ़ न्यूज डेस्क गरियाबंद
देवभोग_प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना है कि देश का कोई भी गरीब कच्चे मकान में न रहे और हर जरूरतमंद के पास पक्का घर हो। इसी सपने को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना चलाई जा रही है। लेकिन गरियाबंद जिले से जो तस्वीर सामने आई है, वह इस योजना की जमीनी हकीकत को कटघरे में खड़ा करती है।
क्या है मामला?
देवभोग ब्लॉक के सरगीगुड़ा गांव के गरीब किसान सुबल सिंह ने मीडिया के सामने आरोप लगाया था कि आवास योजना के समन्वयक विकास द्विवेदी ने उससे पांच हजार रुपये की रिश्वत मांगी। सुबल सिंह ने कहा: “मैं छोटा किसान हूं। घर कच्चा है, इसलिए प्रधानमंत्री आवास के लिए आवेदन किया। समन्वयक विकास द्विवेदी से मिलने गया तो बोले – ‘पांच हजार रुपये दो, तभी काम होगा’। मैं कहां से लाऊं ये पैसा? सरकार गरीबों को घर देती है, लेकिन यहां पैसा मांगा जा रहा है।”
ग्रामीणों ने खोली पोल
केवल सुबल सिंह ही नहीं, गांव के कई अन्य हितग्राहियों ने भी दबी जुबान में बताया कि पैसा दिए बिना मकान स्वीकृत नहीं होता। आवास के पंजीयन, जियो टैगिंग और अन्य कार्यों के नाम पर हजारों रुपये की वसूली की जाती थी।
प्रशासन ने की कार्यवाही
*शिकायत के बाद देवभोग जनपद पंचायत सीईओ ने तत्काल जांच के आदेश दिए।
*जांच में आरोप सही पाए गए।
*आरोपी विकास द्विवेदी को समन्वयक पद से हटाकर जिला जनपद कार्यालय में अटैच कर दिया गया।
देवभोग जनपद पंचायत सीईओ ने कहा:“प्रधानमंत्री आवास योजना गरीबों के लिए है। किसी भी स्तर पर रिश्वतखोरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। दोषी कर्मचारी पर विभागीय कार्रवाई जारी है।”
मीडिया की लगातार रिपोर्टिंग का असर
इस मामले में लगातार छत्तीसगढ़ वेब न्यूज और खबर भारत 360 चैनल में मीडिया रिपोर्टिंग के चलते प्रशासन पर कार्रवाई का दबाव बना।
ग्रामीणों का कहना है – “यदि मीडिया हमारी आवाज न उठाता, तो हम गरीब लोग जिंदगीभर यूं ही चुप रहते। अब कम से कम उम्मीद जगी है कि बिना पैसा दिए भी घर मिल सकता है।”
राजनीतिक और प्रशासनिक एंगल
*राजनीतिक दृष्टिकोण से यह मामला सरकार की जनहितकारी योजनाओं पर सवाल खड़े करता है।
*मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय द्वारा सभी जिलों में प्रधानमंत्री आवास योजना को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन नीचे के कर्मचारियों की रिश्वतखोरी इस उद्देश्य को पंगु बना रही है।
क्यों अहम है यह खुलासा?
* ✅ गरीबों के अधिकार का खुला हनन
* ✅ निचले स्तर के कर्मचारियों की मनमानी उजागर
* ✅ सरकार की योजनाओं की साख पर बट्टा
* ✅ मीडिया की ताकत और जनहित रिपोर्टिंग का असर
विशेष टिप्पणी_
यदि गरीब हितग्राही सुबल सिंह जैसे लोग आवाज उठाने का साहस न जुटाते और मीडिया निरंतर फॉलोअप न करती, तो यह मामला भी हजारों अन्य मामलों की तरह दबा रह जाता। अब देखना होगा कि प्रशासन की यह कार्यवाही नजर का धोखा साबित होती है या रिश्वतखोरी के खिलाफ स्थायी उदाहरण बन पाती है।









