गजानंद कश्यप छत्तीसगढ़ न्यूज डेस्क गरियाबंद
देवभोग_देवभोग और आसपास के गांवों के किसानों पर इस बार दोहरी मार पड़ रही है। एक तरफ बारिश देर से आने से बोवनी रुकी है, दूसरी ओर खाद की भारी कमी से किसान परेशान हैं। लेकिन इन सबके बीच उर्वरक दुकानदारों ने कालाबाजारी का ऐसा जाल बिछाया है, जिसमें किसानों की जेब ही नहीं बल्कि उनके सपनों को भी लूटा जा रहा है।
सरकार ने किसानों को राहत पहुंचाने और कालाबाजारी रोकने के लिए आधार कार्ड से लिंक पीओएस मशीनों के जरिए उर्वरक वितरण अनिवार्य किया है। लेकिन देवभोग क्षेत्र की वास्तविकता ये है कि यहाँ अधिकांश उर्वरक दुकानों में पीओएस मशीनें नहीं लगीं। जिन दुकानदारों को मशीनें नहीं मिलीं, उन्हें कैश मेमो (बिक्री रसीद) देना अनिवार्य है, ताकि बाद में सत्यापन और नियंत्रण संभव हो सके। पर यहाँ न तो मशीन का नामोनिशान है और न ही किसानों को कोई बिल दिया जा रहा है।
सरकारी रेट से दोगुने दाम पर बिक रही खाद
ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार,
डीएपी 20-20 की सरकारी कीमत करीब ₹1300 प्रति बोरी है, लेकिन देवभोग के बाजारों और गांवों में इसे ₹1700 से ₹1800 में बेचा जा रहा है।
डीएपी 1846, जिसकी निर्धारित दर ₹1500-1600 के बीच है, वह ₹2000 तक बिक रही है।
यूरिया, जिसका सरकारी रेट ₹266.50 प्रति बोरी, दुकानदार उसे ₹500 तक बेच रहे हैं।
पोटाश, जिसकी सरकारी दर ₹1500 है, वह ₹2100 तक बेची जा रही है।
यानी हर बोरी पर ₹400 से ₹700 तक की अवैध वसूली किसानों से की जा रही है। स्थिति यह है कि गरीब किसान अपने खेत की बोनी और धान की रोपाई का खर्च पहले से ही कर्ज लेकर कर रहे हैं, ऊपर से उर्वरक के इस महंगे बाजार ने उन्हें और भी कर्जदार बना दिया है।
किसानों की पीड़ा: "खाद लेना मजबूरी है"
देवभोग के किसान नाम ना बताने के शर्त कहते हैं, - “हम लोग क्या करें? बिना खाद के धान की फसल नहीं होगी। सरकार कहती है सस्ता खाद है, लेकिन जब दुकान जाते हैं तो बोलते हैं – लेना है तो लो, नहीं तो जाओ। कोई बिल भी नहीं देते। सब मुनाफा कमा रहे हैं, नुकसान किसान का ही है।”
इसी तरह किसान सुकालू मरकाम का कहना है कि - “बोवनी का समय निकल रहा है। खाद की कमी है। ऊपर से कालाबाजारी हो रही है। अधिकारी सुनते नहीं, दुकानदार डाँटते हैं। किसान जाए तो जाए कहाँ?”
क्यों जरूरी है पीओएस मशीन
सरकार ने देशभर में पीओएस मशीन के जरिए खाद वितरण की व्यवस्था इसलिए लागू की है ताकि:
1. उर्वरक की कालाबाजारी पर रोक लगे।
2. किसानों को सीधी सब्सिडी का लाभ मिले।
3. बिक्री का रिकॉर्ड डिजिटल हो, जिससे दुकानदार अधिकतम कीमत से ज्यादा न वसूल सकें।
लेकिन देवभोग सहित छत्तीसगढ़ के कई दूरस्थ क्षेत्रों में पीओएस मशीन की व्यवस्था अब तक पूरी नहीं हो पाई है। प्रशासन और कृषि विभाग की लापरवाही से किसान ही पीस रहे हैं।
प्रशासन का दावा: कार्रवाई होगी_
इस विषय में जब गरियाबंद जिला के उप संचालक कृषि चंदन राय से बात की गई तो उन्होंने कहा, - “आपके माध्यम से मुझे यह जानकारी मिली है। ऐसे दुकानें जो बिना पीओएस मशीन और कैश मेमो के खाद बेच रहे हैं, उनकी लिस्ट मुझे दें। उन पर कार्रवाई करना मेरी जिम्मेदारी है। मैं जल्द ही जांच करूँगा।”
लेकिन सवाल यह है कि किसानों की यह लूट कब तक चलती रहेगी? पीओएस मशीनें नहीं, कैश मेमो नहीं, खाद के सरकारी रेट का पालन नहीं – तो किसानी को बर्बाद करने की यह साजिश आखिर किसके संरक्षण में चल रही है?
कृषि विशेषज्ञों की चेतावनी
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि बोनी के समय खाद की कमी और कालाबाजारी इसी तरह जारी रही, तो धान की उत्पादकता पर बड़ा असर होगा। इससे किसान की आर्थिक स्थिति कमजोर होगी और खाद्यान्न संकट भी गहराएगा।
देवभोग के किसानों की यह लड़ाई सिर्फ उर्वरक के दाम की नहीं, बल्कि व्यवस्था की नाकामी और प्रशासनिक सुस्ती के खिलाफ भी है। अगर जल्द ही पीओएस मशीनें नहीं लगाई गईं और कालाबाजारी पर कार्रवाई नहीं हुई, तो इस बार खेत भी सूने रहेंगे और किसानों के घर भी।








