देवभोग: खबर छपने के बाद भी नहीं जागा प्रशासन, बेधड़क ओडिशा से छत्तीसगढ़ में हो रही खाद की तस्करी
गजानंद कश्यप छत्तीसगढ़ न्यूज डेस्क गरियाबंद
देवभोग_खाद की कालाबाजारी और पीओएस मशीन की अनुपलब्धता को लेकर पिछले सप्ताह व्यापक समाचार प्रकाशित होने के बावजूद कृषि विभाग और प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी है। देवभोग के बाजारों, चौराहों और गांवों में आज भी बिना लाइसेंस, बिना कैश मेमो और बिना पीओएस मशीन के खाद बेची जा रही है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अब ओडिशा बॉर्डर पार कर तस्कर धड़ल्ले से छत्तीसगढ़ में खाद खपा रहे हैं। ओडिशा के नुआपाड़ा, खड़ियार, बरगांव, और धामनगाँव जैसे क्षेत्रों से भारी मात्रा में खाद लाकर देवभोग, फिंगेश्वर, गरियाबंद और अन्य गांवों में ऊंचे दामों पर बेची जा रही है।
तस्करी का खुला खेल, कोई रोक-टोक नहीं
स्थानीय सूत्रों की मानें तो रात के अंधेरे में या तड़के सुबह उर्वरक से भरे ट्रैक्टर और छोटे वाहन बॉर्डर पार करते हैं। रास्ते में कहीं कोई चेकिंग नहीं होती। न ही पुलिस, न राजस्व विभाग और न ही कृषि विभाग की टीम इन तस्करों पर नजर रख रही है।
इससे दोहरा नुकसान हो रहा है:
1. छत्तीसगढ़ के किसानों को निर्धारित दर पर खाद नहीं मिल पा रही।
2. ओडिशा से लाई गई खाद पर सरकारी सब्सिडी नहीं मिलती, जिससे किसान महंगे दाम देने को मजबूर हैं।
खाद की दरें अब भी बेहिसाब
डीएपी 20-20 की सरकारी रेट ₹1300, पर बाजार में ₹1700-1800 में बिक रही।
डीएपी 18-46 की सरकारी रेट ₹1500-1600, लेकिन तस्करी वाली खाद ₹2000 तक।
यूरिया की सरकारी रेट ₹266.50, लेकिन ₹500 में बिक रही।
पोटाश की सरकारी रेट ₹1500, बाजार में ₹2100 तक वसूली।
किसानों का सवाल: प्रशासन सो रहा है क्या?
देवभोग के किसान ने कहा, - “खबर छपने के बाद सोचे थे कार्रवाई होगी। लेकिन कुछ नहीं हुआ। तस्करी और महंगे दाम वैसे के वैसे हैं। अधिकारी दफ्तर में बैठे हैं, दुकानदार हमारी जेब काट रहे हैं। खाद न मिले तो बोवनी कैसे करेंगे?”
कृषि उप संचालक की चुप्पी सवालों के घेरे में
पिछली खबर के दौरान कृषि उप संचालक गरियाबंद चंदन राय ने कहा था कि - “ऐसे दुकानों की लिस्ट दो, कार्रवाई करूंगा।”
लेकिन एक सप्ताह बीतने के बाद भी न कोई जांच दल गठित हुआ, न लाइसेंस निरस्तीकरण की कार्यवाही हुई, न ही पीओएस मशीन वितरण की स्थिति सुधरी। अब किसान सवाल पूछ रहे हैं कि क्या विभाग मूकदर्शक बना रहेगा?
तस्करी रोकने प्रशासन का कोई प्लान नहीं
बॉर्डर पार खाद की तस्करी रोकने के लिए न राजस्व विभाग ने नाके लगवाए और न कृषि विभाग ने निगरानी दल। जबकि बॉर्डर से देवभोग तक कई जगह चेकपोस्ट बने हुए हैं, लेकिन वहाँ किसी तरह की जांच नहीं हो रही।
विशेषज्ञों की चेतावनी
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि तस्करी की खाद पर सब्सिडी नहीं मिलती, और यदि इसी तरह किसान महंगे दामों पर खाद खरीदेंगे तो:
1. उनकी उत्पादकता लागत दोगुनी हो जाएगी।
2. कर्ज का बोझ बढ़ेगा।
3. उत्पादन लागत बढ़ने से धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी कम पड़ेगा।
किसानों की मांग: तुरंत कार्रवाई हो
किसानों ने प्रशासन से मांग की है कि:
* बॉर्डर पर तत्काल चेकिंग शुरू हो।
* बिना पीओएस मशीन और कैश मेमो दुकानों पर लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई की जाए।
* खाद की सरकारी दर सुनिश्चित करवाई जाए।
यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो इस बार देवभोग अंचल की धान की फसल प्रभावित होगी और खाद्यान्न संकट पैदा हो सकता है।









