IMG-20251013-WA0049

संस्कृत के बिना अधूरी है हमारी संस्कृति"– गौरीशंकर कश्यप


गजानंद कश्यप छत्तीसगढ़ न्यूज डेस्क गरियाबंद 

गरियाबंद में नई पहल की शुरुआत– संस्कृत शिक्षक अब गुरुदेव व गुरुमाता के नाम से जाने जाएंगे।

देवभोग_संस्कृत हमारी सांस्कृतिक जड़ों की आत्मा है। संस्कृत वैदिक भाषा है, व्यक्ति में संस्कृत और संस्कृति दोनों का भाव जागृत हो। उक्त बातें गरियाबंद के जिला पंचायत अध्यक्ष गौरीशंकर कश्यप ने जिला पंचायत के सभाकक्ष में मंगलवार को आयोजित एकदिवसीय कार्यशाला में कही है। यह कार्यशाला संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से आयोजित की गई थी। 

जिला पंचायत अध्यक्ष गौरीशंकर कश्यप ने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ में गरियाबंद पहला जिला है, जहां संस्कृत विषय पर कार्यशाला आयोजित की गई है। जीवनशैली में संस्कृत आवश्यक है। इस कार्यशाला का उद्देश्य न केवल संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार करना है, बल्कि इसे जनमानस की भाषा बनाने की दिशा में एक सार्थक पहल भी है। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा के शिक्षक धरोहर के रूप में हैं। उन्होंने गरियाबंद जिला में संस्कृत विषय के शिक्षकों को लेकर एक नई पहल की शुरुआत की है, जिसमें सभी संस्कृत के शिक्षकों को आज से गुरुदेव व गुरुमाता के नाम से जाने जाएंगे। कहा कि इस कार्यशाला से इन शिक्षकों से बहुत कुछ सीखने को मिला है। उन्होंने आगे कहा कि संस्कृत वैदिक भाषा है। इस भाषा को जन–जन के मुख में हो इसके लिए कैसा प्रयास हो और प्रत्येक व्यक्ति के मनोभाव में सोचने की प्रवृत्ति संस्कृत में हो इसके लिए आगे काम किए जाने की बात कही हैं। व्यक्ति में संस्कृत और संस्कृति दोनों का भाव जागृत हो इस उद्देश्य के साथ यह कार्यशाला रखा गया था।

कार्यशाला को संस्कृत भारती छत्तीसगढ़ के प्रांत संगठन मंत्री हेमंत साहू ने संबोधित करते हुए कहा कि संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए कार्य किए जा रहे हैं। पूरे विश्व में संस्कृत को बचाने के लिए संस्कृत भारती प्रयास कर रही है। इसके साथ ही कार्यशाला को प्राध्यापक जैनेन्द्र दीवान, प्रेमानंद महिलांग, जिला पंचायत उपाध्यक्ष लालिमा ठाकुर, डीएमसी शिवेश कुमार शुक्ला ने भी संबोधित किया।

बॉक्स में – *संस्कृत विकल्प नहीं अनिवार्य विषय हो–

एकदिवसीय कार्यशाला में शिक्षक और भाषा विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस दौरान कहा गया कि संस्कृत का एक–एक शब्द अमृततुल्य है, प्रेरणादायक विषय है। संस्कृत के ऐतिहासिक महत्व और उसकी वर्तमान उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया। साथ ही यह भी चर्चा हुई कि नई पीढ़ी को संस्कृत से जोड़ने के लिए किस प्रकार के प्रयास किए जाने चाहिए। इसके अलावा शिक्षकों ने मांग रखी कि संस्कृत विषय विकल्प में नहीं बल्कि अनिवार्य विषय हो। साथ ही स्कूल में यह विषय है तो इसके शिक्षक भी होनी चाहिए, यह व्यवस्था सुनिश्चित किए जाए।