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देवभोग हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में रूम के नाम पर नियमों की धज्जियाँ!पति-पत्नी को अलग-अलग रूम, पटवारी और सचिव को नियमों के विरुद्ध आवास! ट्रांसफर वालों के नाम पर भी रूम अलॉट, जांच की मांग तेज़

गजानंद कश्यप छत्तीसगढ़ न्यूज डेस्क गरियाबंद

गरियाबंद_देवभोग हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में सरकारी रूमों के आवंटन को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। आरोप है कि यहां कई कमरों का आवंटन नियमों को दरकिनार कर प्रभावशाली लोगों को दे दिया गया है।

सूत्रों के मुताबिक, पति-पत्नी को अलग-अलग रूम, पटवारी को बिना आदेश के रूम, शिक्षक और पंचायत सचिव को मुख्यालय से बाहर आवास दे दिया गया है। इतना ही नहीं, जिन कर्मचारियों का ट्रांसफर अन्य स्थानों पर हो चुका है, उनके नाम पर भी रूम अलॉट हैं, जो स्पष्ट रूप से नियमों का उल्लंघन है। ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पूरे प्रकरण की जांच और कार्यवाही की मांग की है।

हाउसिंग बोर्ड के नियम क्या कहते हैं

छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड अधिनियम के अनुसार —

1. आवास या रूम का आवंटन केवल पात्र आवेदकों को ही किया जा सकता है।

2. पात्रता में आने वाले – शासकीय सेवक, निम्न/मध्यम आय वर्ग के व्यक्ति, और जिनका मुख्यालय उसी क्षेत्र में है – को प्राथमिकता दी जाती है।

3. एक ही परिवार (पति-पत्नी) को अलग-अलग रूम देना पूरी तरह नियमविरुद्ध है।

4. बिना सक्षम अधिकारी के लिखित आदेश किसी को भी आवास देना अवैध माना जाता है।

5. जिन कर्मचारियों का मुख्यालय पहले से तय है या जिनका स्थानांतरण हो चुका है, उन्हें कॉलोनी में रहना नियम का उल्लंघन है।

देवभोग कॉलोनी में अनियमित आवंटन के उदाहरण

पति-पत्नी दोनों को अलग-अलग रूम एलॉट किया गया, जबकि दोनों एक ही परिवार के सदस्य हैं।

पटवारी को बिना आदेश के रूम दिया गया, जबकि उसे मुख्यालय में रहना चाहिए।

शिक्षक को भी रूम रहने हेतु अनुमति दी गई, जो जांच के दायरे में है।

पंचायत सचिव को आवास आदेश जारी हुआ, जबकि उसका मुख्यालय पंचायत स्तर पर निर्धारित है।

कुछ अधिकारियों-कर्मचारियों का ट्रांसफर अन्य जगह हो चुका है, फिर भी उनके नाम पर रूम आवंटन जारी है।

स्थानीय कर्मचारियों को भी रूम आवंटित कर दिया गया, जबकि यह सरकारी नीति के खिलाफ है।

इन सभी मामलों में स्पष्ट रूप से नियमों की अनदेखी और विभागीय सिफारिशों का दुरुपयोग नजर आ रहा है।

ग्रामीणों और समाजसेवियों का आरोप

ग्रामीणों का कहना है कि हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी का उद्देश्य जरूरतमंदों और पात्र सरकारी कर्मचारियों को आवास देना है, लेकिन अब यह “सुविधा और सिफारिश आधारित प्रणाली” बन चुकी है।

एक स्थानीय नागरिक ने कहा —

“देवभोग हाउसिंग बोर्ड में पारदर्शिता नाम की कोई चीज़ नहीं बची है। जिनके पास प्रभाव है, उन्हें रूम मिल गया, और जो पात्र हैं वे बाहर हैं।”

जनप्रतिनिधियों और नागरिकों की मांग

देवभोग और आसपास के जनप्रतिनिधियों ने कलेक्टर गरियाबंद एवं हाउसिंग बोर्ड आयुक्त से मांग की है कि —

इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए।

बिना आदेश या पात्रता के रूम प्राप्त करने वालों पर कार्रवाई हो।

ट्रांसफर वाले कर्मचारियों के नाम पर दर्ज रूम तुरंत खाली कराए जाएं।

हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी का आवंटन रजिस्टर और पात्रता सूची सार्वजनिक की जाए।

अवैध रूप से कब्जे में लिए गए कमरों को तुरंत खाली कराया जाए।

पूर्व में भी रहे विवाद

देवभोग हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में इससे पहले भी आवास आवंटन को लेकर सवाल उठते रहे हैं। कई बार रिश्तेदारी, राजनीतिक दबाव और विभागीय सिफारिशों से रूम दिए जाने की शिकायतें हुईं, लेकिन जांच के बाद भी कार्यवाही नहीं हो पाई। देवभोग हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी का यह मामला पारदर्शिता और जवाबदेही की कसौटी पर है।

पति-पत्नी को अलग रूम, पटवारी और सचिव को मुख्यालय से बाहर आवास, और ट्रांसफर वाले कर्मचारियों के नाम पर रूम जैसे मामले विभागीय लापरवाही और नियमों की अनदेखी को स्पष्ट दर्शाते हैं। अब सबकी नजर जिला प्रशासन पर है कि वह इस मामले में कितनी तत्परता से कार्रवाई करता है।

जब मीडिया कर्मी द्वारा इस संबंध में जानकारी दी गई, तो उन्होंने कहा कि “मुझे इस मामले की जानकारी नहीं है। यह अगर देवभोग क्षेत्र से संबंधित है, तो मैं पता करवाकर आपको अवगत कराता हूँ।”

कलेक्टर भगवान सिंह ऊकेई गरियाबंद